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दोस्तों,
प्रसन्नता का विषय है कि आज विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन क्या इस दिन के कारण हम वाकई पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक हो जाते हैं; अथवा क्या यह दिन हमें अपने दायित्व का बोध करवा पाता है? या फिर यह दिन मात्र एक औपचारिक रस्म सा हो गया है?
प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी मेरे जेहन में इस प्रकार के अनेक सवाल उठने लगे हैं। इसमें मुझे कोई शक नहीं है कि हम इस दिवस को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। बड़े-बड़े विज्ञापन, अनेक प्रतियोगिताएं, प्रबुद्ध नागरिकों की गोष्ठियों एवं समारोह, वैचारिक लेख, प्रेरणाप्रद किस्से एवं अनुभव इत्यादि चीजों का भरपूर समावेश होता है इस दिन। किंतु क्या वाकई यह सब एक वृहद स्तर पर पर्यावरण की रक्षा करने एवं उसे सजोने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाते हैं?
क्या यह सब कार्य कर के हम अपना उत्तरदायित्व पूर्ण हुआ समझकर इससे पल्लू नहीं झाड़ लेते?
कभी-कभी तो ऐसा भी प्रतीत होता है कि विश्व पर्यावरण दिवस की आड़ में हम पर्यावरण के प्रति लोगों को गुमराह करने का कार्य कर रहे हैं। हम में से अधिकांश लोगों को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले सबसे अहम कारणों का ही पता नहीं है, तो हम उनका निवारण कैसे करेंगे!
आज भी जब मैं लोगों से मिलता हूं और इस बाबत बात करता हूं कि पशुओं की खेती पर्यावरण के नाश का सबसे अहम कारण है तो लोग आश्चर्य व्यक्त करते हैं। पशुओं की खेती एक ऐसा कारण है जो हमारे प्रत्यक्ष व्यक्तिगत नियंत्रण में है। हम अपनी व्यक्तिगत आदतों में परिवर्तन लाकर पशुओं से प्राप्त सभी प्रकार की सेवाओं और उत्पादों का निषेध कर सकते हैं। इससे पशु पालन व्यवसाय की आवश्यकता ही समाप्त हो जाएगी और न केवल इससे मासूम बेजुबान पशुओं पर हो रही अनंत क्रूरता से उनकी मुक्ति होगी बल्कि हमारे पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र को सहेजने में भी एक बड़ी उपलब्धि हासिल होगी। लेकिन क्या लोगों को इस और कोई भी कदम उठाने के लिए इस दिन प्रेरित किया जाता है?
यह एक बड़ा सवाल है क्योंकि हम लोग अपनी आदतों के गुलाम बने हुए हैं और अपनी ही आदतों से लड़ने में कमजोर साबित होते हैं।
आवश्यकता है उन बहादुर लोगों की जो अपनी आदतों पर विजय प्राप्त कर इस धरती के पर्यावरण को सहेज सके।
सभी को विश्व पर्यावरण दिवस की बहुत-बहुत बधाई!