"जी" का जंजाल!

नमस्ते जी!

आप समझ रहे हैं ना जी?

आज की पोस्ट में मैं "जी" शब्द पर चर्चा करने जा रहा हूं जी।

जी!


है बहुत ही छोटा-सा शब्द, किंतु बड़ा ही प्यारा शब्द है ये जी।
इस छोटे-से आदर-सूचक शब्द में कितना आदर एवं सम्मान का भाव छुपा है; इसका महत्व शायद आज के राजनीतिज्ञ ही बेहतर समझ पाए हैं!

भला कोई किसी "आतंकवादी" के नाम के आगे सम्मान-सूचक 'जी' शब्द का प्रयोग कर ले तो क्या कोई अपराध हो जाता है?!!

चाहे वो अतंकवादी हो, या कोई अन्य संगीन अपराधी ...है तो इंसान ही!
यदि आप मेरे ब्लॉग के नियमित पाठक हैं तो शायद आप यह भी जानते होंगे कि मैं तो मृत्यु दंड जैसी सजा के भी पक्ष में नहीं हूं।

लगभग सभी धर्म ग्रंथों में लिखा है कि हर इंसान में परमात्मा का निवास होता है। प्रत्येक इंसान में उस परम तत्व को पाने की संभावना छुपी हुई है। हमें उसकी तोहीन करने का क्या हक है?

सा: मारवाड़ी और मेवाड़ी की मिठास


राजस्थान की प्रसिद्ध और बेहद ही मीठी बोलियां हैं - मारवाड़ी और मेवाड़ी। इनमें "जी" शब्द के समानार्थ "सा" शब्द का प्रयोग किया जाता है। किसी भी नाम के बाद "जी" की जगह "सा" से अंत किया जाता है।

हर चीज को आदर पूर्वक दृष्टि से देखा जाता है और संबोधित किया जाता है।
जानवरों तक को "सा" से संबोधित किया जाता है।
कई निर्जीव वस्तुओं तक को "सा" लगा कर सम्मान से संबोधित किया जाता है।

आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि इन भाषाओं में किसी को गाली भी बड़ी इज्जत से दी जाती है और गाली के उपरांत "सा" का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।

चाहे फिर वह दुश्मन हो या कोई अपराधी, इज्जत देने में कंजूसी क्यों की जाए?

आज एक छोटे से मुद्दे को तूल देकर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता का अपमान कर रहे हैं। बेवजह उचित - अनुचित का निर्णय कर हम अपनी ही गरिमा को धूमिल कर रहे हैं।

ॐ शांति!